
अरविंद केजरीवाल ने 2013 में दिल्ली की राजनीति में एक नई शुरुआत करते हुए जनता से कई बड़े–बड़े वादे किए थे। मुफ्त बिजली, पानी, बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था, महिला सुरक्षा, और यमुना की सफाई जैसे वादे उनके घोषणापत्र का हिस्सा बने। अब 2025 में भी अरविंद केजरीवाल वही पुराने वादे दोहरा रहे हैं और जनता से 5 साल का और समय मांग रहे हैं, यह कहते हुए कि पिछले 12 वर्षों में वे अपने वादे पूरे नहीं कर पाए। सवाल यह उठता है कि क्या इस बार दिल्ली की जनता उन्हें फिर से उन्हीं वादों को पूरा करने का मौका देगी? आम आदमी पार्टी (AAP) के 2025 के घोषणापत्र में भी कोई नई योजना या वादा नहीं है, बल्कि वही पुरानी बातें हैं जो 2013 से कही जा रही हैं।
अब नजर डालते हैं अरविंद केजरीवाल के वादों और उनकी हकीकत पर
अरविंद केजरीवाल ने जो 10 वादे किए थे, क्या वे अपनी तीन बार की बहुमत की सरकार में उन्हें पूरा कर पाए हैं? इसका जवाब पाने के लिए आपको किसी और से पूछने की जरूरत नहीं है। बस उनके वादों को ध्यान से पढ़िए और अपने आस-पास की स्थिति का जायजा लीजिए। क्या बिजली, पानी, शिक्षा, कूड़े और न्यूयॉर्क और लंदन जैसी सड़कें बनाने जैसे समस्याएँ पर वाकई वह बदलाव आया है जिसका वादा अरविंद केजरीवाल द्वार किया गया था, या यह सब महज एक चुनावी जुमला भर था? दिल्ली की सच्चाई को देखकर खुद तय कीजिए कि वादे हकीकत बने या सिर्फ कागज पर ही सिमटकर रह गए।
1. मुफ्त बिजली: वादा और हकीकत

2013 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया था और इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक के रूप में प्रस्तुत किया। शुरुआत में इस योजना से गरीब और जरूरतमंद वर्ग को काफी राहत मिली, जिससे उन्हें सीधा लाभ हुआ। लेकिन हर चुनाव के बाद उनकी सरकार ने कुछ ऐसे निर्देश जारी किए, जिनके तहत यह सुविधा केवल चुनिंदा वर्गों तक ही सीमित रह गई। बाकी लोगों को बिजली का पूरा बिल भरने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह वादा वास्तव में सभी के लिए था या केवल एक वर्ग को ध्यान में रखकर किया गया था।
2025 के चुनाव से पहले, दिल्ली के कई लोग इस वादे से नाराज़ हैं। जहां भी अरविंद केजरीवाल लोगों से मिलने जा रहे हैं, वहां लोग उन्हें अपने बिजली और पानी के बिल दिखा रहे हैं। इन घटनाओं के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनसे केजरीवाल को शर्मिंदा होना पड़ रहा है। अब वह यह कह रहे हैं कि अगर उनकी सरकार फिर से बनती है, तो आपका बिजली का बिल माफ कर दिया जाएगा। सवाल यह है कि क्या जनता इस वादे पर फिर से भरोसा करेगी?
2. 24 घंटे पानी और हर महीने 20000 लीटर पानी मुफ्त
अरविंद केजरीवाल ने 2013 में वादा किया था कि दिल्ली के हर घर को 24 घंटे पीने का साफ पानी मुहैया कराया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने हर परिवार को हर महीने 20,000 लीटर पानी मुफ्त देने का भी ऐलान किया। लेकिन 12 साल बाद, यह वादा पूरी तरह से हकीकत में बदलता नहीं दिखा। आज भी दिल्ली के कई इलाकों में पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है। कई जगहों पर नलों से गंदा और बदबूदार पानी आने की शिकायतें आम हैं। खुद आम आदमी पार्टी की सदस्य और सांसद स्वाति मालीवाल ने सोशल मीडिया पर दिल्ली की जनता की ऐसी कई शिकायतें साझा की हैं।
दिल्ली के कई इलाकों में आज भी लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। कुछ जगहों पर पानी की सप्लाई अनियमित है, तो कहीं दूषित पानी की समस्या बनी हुई है। जिन क्षेत्रों में पानी की सप्लाई बेहतर हुई है, वहां भी 20,000 लीटर मुफ्त पानी का फायदा केवल गिने-चुने लोगों को ही मिल पाया। दिल्ली जल बोर्ड को पिछले चार सालों में भारी घाटा हुआ है, जो करीब 3166 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। 2019-20 में 344.05 करोड़, 2020-21 में 770.87 करोड़, 2021-22 में 1196.22 करोड़ और 2022-23 में 854 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया गया। हालांकि, इस घाटे की भरपाई दिल्ली सरकार करती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या जल बोर्ड इस स्थिति में है कि और ज्यादा पानी मुफ्त दे सके? 2025 में अरविंद केजरीवाल फिर से यह वादा दोहरा रहे हैं, लेकिन दिल्ली की जनता के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या 13 साल पुराने इस अधूरे वादे पर भरोसा किया जा सकता है?
3. सरकारी स्कूलों में विश्वस्तरीय शिक्षा: वादा और हकीकत
अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि दिल्ली के हर बच्चे को विश्वस्तरीय शिक्षा मिलेगी। सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने और उन्हें प्राइवेट स्कूलों के बराबर लाने का दावा किया गया। इस दिशा में शुरुआती प्रयासों ने कुछ बेहतरीन नतीजे दिए। दिल्ली के कुछ सरकारी स्कूलों में आधुनिक कक्षाओं, स्मार्ट बोर्ड और बेहतर शिक्षण सुविधाओं का प्रावधान किया गया, जिसे कई लोगों ने सराहा। शिक्षा के क्षेत्र में हुए इन बदलावों ने कुछ हद तक सरकारी स्कूलों को एक नई पहचान दिलाई।
इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने “हैप्पीनेस करिकुलम” और “देशभक्ति करिकुलम” जैसे अभिनव कार्यक्रम शुरू किए, जो छात्रों में आत्मविश्वास और नैतिक मूल्यों को विकसित करने के लिए सराहनीय प्रयास थे। इन सुधारों ने न केवल छात्रों बल्कि अभिभावकों का भी ध्यान आकर्षित किया।
हालांकि, सवाल यह है कि अगर शिक्षा मॉडल में सुधार हुआ है, तो कितने बच्चों ने प्राइवेट स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया?
दिल्ली के 60-70% सरकारी स्कूलों की हालत आज भी वैसी ही बनी हुई है, जैसी पहले थी। कई छात्रों ने शिकायत की है कि उनके स्कूलों की छतें टपकती हैं और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षकों की कमी, बढ़ते छात्र–शिक्षक अनुपात और गुणवत्ता में सुधार की धीमी गति। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया खुद लंबे समय तक शराब घोटाले के कारण जेल में रहे और इस चुनाव में उनकी पटपड़गंज सीट भी बदल दी गई है, जहां से वह लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके थे। अब वह जंगपुरा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन कुछ सर्वेक्षणों में उन्हें वहां हारते हुए दिखाया जा रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय काम हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि अब भी कई सरकारी स्कूलों के बच्चे उस स्तर की शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं, जिसकी उम्मीद की गई थी। शिक्षा व्यवस्था में सुधार की यह यात्रा अभी अधूरी है और इस पर और अधिक काम किए जाने की जरूरत है।
4. यमुना की सफाई: वादा और हकीकत
2013 में अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि वह यमुना नदी को इंग्लैंड की थेम्स नदी की तरह साफ करेंगे और 2024 तक इसे पूरी तरह प्रदूषण मुक्त बना देंगे। उन्होंने इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा भी किया। शुरुआती उम्मीदों के बावजूद, 12 साल बाद यमुना की हालत देखकर लगता है कि यह वादा केवल भाषणों और विज्ञापनों तक ही सीमित रह गया।
यमुना आज भी जहरीले झाग की सफेद चादर से ढकी हुई है, जो न केवल दिल्ली के पर्यावरण की दयनीय स्थिति को उजागर करती है, बल्कि सरकार की नाकामी का भी प्रतीक बन चुकी है। यहां तक कि सैटेलाइट इमेजरी में भी इस प्रदूषण को देखा जा सकता है। सवाल यह है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद यमुना की सफाई में कोई ठोस प्रगति क्यों नहीं हुई?
यमुना की सफाई से दिल्लीवासियों को पानी की कमी जैसी गंभीर समस्या का समाधान मिल सकता है। एक स्वच्छ यमुना न केवल पर्यावरण में सुधार लाएगी, बल्कि इसके किनारों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जा सकता है, जो दिल्ली के विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं। कई देशों, जैसे इज़राइल और सऊदी अरब, ने समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बना दिया है। तो फिर सवाल यह है कि जब समुद्र के पानी को साफ किया जा सकता है, तो यमुना जैसे महत्वपूर्ण नदी को स्वच्छ करना इतना मुश्किल क्यों हो गया?
अब, जब 2025 के चुनाव करीब हैं, अरविंद केजरीवाल एक बार फिर यमुना की सफाई का वादा कर रहे हैं। लेकिन क्या इस बार यह वादा हकीकत में बदलेगा
5. दिल्ली के हर परिवार को आधुनिक अस्पतालों के जरिए इलाज की समुचित सुविधा आधुनिक इलाज

अरविंद केजरीवाल ने 2013 में वादा किया था कि दिल्ली के हर परिवार को आधुनिक अस्पतालों के जरिए इलाज की समुचित सुविधा मिलेगी। लेकिन इस वादे की जगह मोहल्ला क्लीनिक ने ले ली, जिसे अब दिल्ली के लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। जहां एक ओर आधुनिक अस्पतालों की बात की गई थी, वहीं चुनाव जीतने के बाद सिर्फ 2 कमरे का मोहल्ला क्लीनिक खोला जाता है। और इन मोहल्ला क्लीनिकों में भी बुनियादी सुविधाओं की कमी और कर्मचारियों की कमी की शिकायतें आम हो चुकी हैं।
बहुत से लोगों की शिकायत है कि अधिकांश मोहल्ला क्लीनिक बंद रहते हैं क्योंकि वहां डॉक्टर नहीं होते। मोहल्ला क्लीनिक के ज्यादातर समय बंद रहने के कारण अब वहां आवारा पशु का कब्जा हो गया है। साथ ही, इन क्लीनिकों की सफाई भी नहीं होती, जिससे स्थिति और भी खराब हो जाती है। कई लोग मोहल्ला क्लीनिक की वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालते रहते हैं, जो इन सुविधाओं की खामियों को उजागर करती हैं।
केजरीवाल ने जो वादा किया था, वह पूरा नहीं हो पाया। दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक बने, लेकिन क्या वे सच में हर व्यक्ति को समुचित इलाज या आधुनिक इलाज दे पाए? यह सवाल अब दिल्ली की जनता के सामने खड़ा है।
6. दिल्ली में 11000 से ज्यादा बसें दिल्ली की सड़कों पर दौड़ेंगी
अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि दिल्ली की सड़कों पर 11,000 से ज्यादा बसें दौड़ेंगी, ताकि लोगों को बेहतर और सुविधाजनक परिवहन की सुविधा मिले। हालांकि, यह वादा पूरी तरह से पूरा नहीं हो पाया, लेकिन दिल्ली सरकार ने कई अच्छे कदम भी उठाए हैं। दिल्ली में कुछ नए बस रूट्स शुरू किए गए हैं। इसके अलावा, दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत की गई है, जो पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए एक सकारात्मक कदम है। कुछ इलाकों में बसों की संख्या बढ़ी है और ट्रैफिक की समस्या को हल करने के लिए नई योजनाएं बनाई गई हैं।
लेकिन दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (DTC) 2015 से हर साल 1,000 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। कई बार DTC के कर्मचारियों को वेतन मिलने में देरी हुई है, और हड़तालों के कारण यात्रियों को असुविधा हुई है। दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने इस्तीफा दिया है, जो इस वादे की असफलता का एक बड़ा संकेत है। 11,000 बसों का सपना अभी अधूरा है, लेकिन दिल्ली सरकार ने परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिए कई प्रयास किए हैं।
7. महिलाओं और छात्रों के लिए मुफ्त बस यात्रा: वादा और हकीकत
अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि दिल्ली की महिलाओं और छात्रों को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दी जाएगी, ताकि उन्हें परिवहन के लिए कोई आर्थिक बोझ न उठाना पड़े। उनका कहना था कि इस कदम से महिलाओं और छात्रों को सुरक्षित, सस्ता और सुविधाजनक परिवहन मिलेगा, जिससे उनका जीवन आसान होगा।
महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की योजना लागू की गई और इसका सकारात्मक असर भी देखा गया। दिल्ली की महिलाएं अब बिना किसी शुल्क के बसों में यात्रा कर रही हैं, जिससे उन्हें यात्रा में सुविधा और सुरक्षा मिली है।
लेकिन, छात्रों के लिए मुफ्त बस यात्रा की योजना का क्रियान्वयन अपेक्षाकृत धीमा रहा है। कई छात्रों ने यह शिकायत की है कि उन्हें यह सुविधा आसानी से नहीं मिल रही और योजनाओं में कई बार बदलाव किए गए हैं।
इसके अलावा, DTC के घाटे और बसों की कमी के कारण यह योजना पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाई है। कई बार सड़कों पर बसों की भीड़ होती है, जिससे छात्रों को यात्रा में कठिनाई होती है।
8. वायु प्रदूषण 3 गुना घटाने का लक्ष्य: वादा और हकीकत

अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण को 3 गुना घटाया जाएगा। उनका कहना था कि दिल्ली को एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण देना उनकी प्राथमिकता है, और इसके लिए सरकार सख्त कदम उठाएगी।
दिल्ली सरकार ने इस वादे को पूरा करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। जैसे कि प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को बंद करना, डीजल वाहनों की संख्या कम करना, और सीएनजी (CNG) वाहनों, इलेक्ट्रिक बसों को बढ़ावा देना। इसके साथ ही, दिल्ली सरकार ने “युद्ध प्रदूषण के खिलाफ” अभियान चलाया और कई अभियान चलाए गए, जिसमें लोगों को पेड़ लगाने और प्रदूषण को कम करने के लिए जागरूक किया गया।
हालांकि, वायु प्रदूषण में कमी आई है, लेकिन 3 गुना घटाने का लक्ष्य अब भी पूरा होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। दिल्ली की हवा में प्रदूषण के स्तर में कमी आई है, लेकिन सर्दियों में धुंआ और धुंध की समस्या अब भी बनी रहती है। इसके अलावा, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की समस्या भी दिल्ली के वायु प्रदूषण को प्रभावित करती है, जिस पर दिल्ली सरकार के प्रयासों का सीमित असर पड़ता है।
9. दिल्ली को कूड़े और मलबे के ढेरों से मुक्ति: वादा और हकीकत

वादा किया गया था कि दिल्ली को कूड़े और मलबे के ढेरों से मुक्ति दिलाई जाएगी। दिल्ली सरकार ने इस वादे को पूरा करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की, जिनमें कूड़ा प्रबंधन, डोर–टू–डोर कूड़ा संग्रहण, और कचरे से ऊर्जा उत्पादन जैसे कदम शामिल थे। इसके अलावा, बड़े कूड़ा डंपिंग साइटों पर काम शुरू किया गया और दिल्ली के कई प्रमुख इलाकों में सफाई अभियान चलाए गए। लेकिन इस समस्या का समाधान नहीं हो पाया। गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में कूड़े के पहाड़ बने हुए हैं और इनसे दिल्लीवासियों को कोई राहत नहीं मिल रही। गाजीपुर में कचरे को रीसायकल करने और सड़क बनाने की बातें की गईं, लेकिन कूड़े के ढेर जस के तस बने हुए हैं।
पहले आम आदमी पार्टी बीजेपी को जिम्मेदार ठहराती थी, लेकिन अब जब एमसीडी पर आप का कब्जा है, तो भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। 2028 तक इन कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने का नया लक्ष्य है, लेकिन क्या दिल्ली को इनसे मुक्ति मिलेगी या यह भी सिर्फ एक और चुनावी वादा बनकर रह जाएगा? यह सवाल अब दिल्लीवासियों के मन में उठ रहा है।
10. जहां झुग्गी, वहीं मकान: वादा और हकीकत

झुग्गी वालो से वादा किया गया था कि “जहां झुग्गी, वहीं मकान“ हर झुग्गी में रहने वालों को एक स्थायी घर मिलेगा। इस वादे का मुख्य उद्देश्य झुग्गियों में रहने वाले लोगों को बेहतर जीवनस्तर और सुविधाएं देना था। लेकिन, इस वादे को पूरा करने में सरकार को अभी तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली है। शुरुआत में दिल्ली सरकार ने कई योजनाएं बनाई थीं, जिसमें झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए मकान देने की बात कही गई थी, लेकिन इन योजनाओं का क्रियान्वयन धीमा रहा।
इस वादे को लेकर सरकार की नाकामी ने दिल्लीवासियों को निराश किया है। दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी की समस्या जस की तस बनी हुई है, अब सवाल यह है कि क्या यह वादा कभी पूरा होगा?
अरविंद केजरीवाल के वादों की हकीकत को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनावी वादे आसानी से दिए जाते हैं, लेकिन उन्हें निभाना उतना ही मुश्किल होता है। 2013 से लेकर 2025 तक के सफर में उनके द्वारा किए गए कई वादे अधूरे रहे हैं, और इनकी हकीकत दिल्लीवासियों के सामने है। चाहे वह मुफ्त बिजली हो, सस्ती शिक्षा, या फिर कूड़े के पहाड़ों से मुक्ति, हर मुद्दे पर सरकार को चुनौती और नाकामी मिली है। दिल्ली में बदलाव की उम्मीद रखने वाले लोग अब सोचने पर मजबूर हैं कि क्या अगले चुनाव में कुछ ठोस कदम उठाए जाएं? अब यह दिल्लीवासियों पर निर्भर करता है कि वे अपनी समस्याओं का समाधान कैसे चाहते हैं। क्या वे एक बार फिर से चौथी बार आप को समर्थन देंगे, या इस बार बदलाव करते हुए कांग्रेस की सरकार लाएंगे? क्योंकि बहुत से लोगों का मानना है कि शीला दीक्षित के समय में जितना विकास दिल्ली का हुआ था, उसके मुकाबले अरविंद केजरीवाल सरकार के समय में कुछ खास काम नहीं हुआ है। या फिर इस बार दिल्ली की जनता दिल्ली में डबल इंजन भाजपा की सरकार को मौका देगी, जो पिछले 25 सालों से दिल्ली में सरकार बनाने में विफल रही है?