
भारत ने अमेरिका के आगे सिर नहीं झुकाया, जिसके परिणामस्वरूप ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगा दिए। भारत शुरुआत से जानता है कि अमेरिका एक दोहरा चरित्र वाला देश है, जो कभी भी किसी का साथ छोड़ सकता है — चाहे वह देश उसका कितना भी करीबी क्यों न रहा हो। शायद यह कहावत अमेरिका के लिए ही बनी है
ऐसा कोई सगा नहीं जिसे अमेरिका ने ठगा नहीं
इसका ताजा उदाहरण एलन मस्क हैं, जिन्होंने ट्रंप को चुनाव जिताने के लिए पूरा प्रयास किया, लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उनका रवैया एलन मस्क के प्रति सबने देखा।
जब ट्रंप पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तब भारत-अमेरिका संबंध काफी मजबूत हुए थे। और जब जो बाइडेन राष्ट्रपति बने, तब भी दोनों देशों के रिश्ते अच्छे रहे। यहाँ तक कि चीन भी इन संबंधों से चिढ़ा हुआ था, जिसका नतीजा भारत-चीन सीमा पर कई झड़पों के रूप में सामने आया। 58 साल बाद पहली बार गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने भिड़े और शहीद हुए।
जैसा कि पहले बताया गया, अमेरिका किसी को भी धोखा दे सकता है। आइए, हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं:
यूरोप पर 15% टैरिफ

यूरोप और अमेरिका नाटो के सदस्य हैं और एक-दूसरे के बहुत करीबी माने जाते हैं। लेकिन अब यूरोप भी अमेरिका पर भरोसा नहीं करता, जो कभी उसका सबसे खास साथी था। ट्रंप यूरोपियन यूनियन पर भी 15% टैरिफ लगा चुके हैं, जबकि यूरोप अमेरिका का मुख्य सहयोगी रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के सामने यूरोप ने घुटने टेक दिए — यह बात हाल ही में यूरोपीय नेताओं के बयानों में साफ सुनी जा सकती है। US-EU ट्रेड डील की हंगरी, फ्रांस और रूस ने कड़ी आलोचना की है। जब अमेरिका अपने सबसे करीबी साझेदारों को नहीं छोड़ रहा, तो दूसरों का क्या होगा? हो सकता है कि ट्रंप की इन्हीं हरकतों की वजह से आने वाले कुछ वर्षों में NATO के टूटने की खबरें भी सामने आ जाएं।
अगर अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने सहयोगियों के साथ ऐसा व्यवहार जारी रखा, तो ट्रंप का “America First” का नारा जल्द ही “America Alone” में बदल सकता है।
यूक्रेन युद्ध

यूक्रेन युद्ध में भी अमेरिका ने क्या किया? जब तक जो बाइडेन राष्ट्रपति थे, तब तक उन्होंने यूक्रेन को खुलकर पूरा समर्थन दिया। लेकिन जैसे ही ट्रंप राष्ट्रपति बने, उन्होंने यूक्रेन को अकेला छोड़ दिया। यह सब दुनिया के सामने लाइव देखा गया, जब यूक्रेनी और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात एक टकराव में बदल गई।
जिस अमेरिका पर भरोसा करके यूक्रेन ने रूस से युद्ध किया, वही अमेरिका उसे बीच में छोड़कर चला गया।
कल को अगर चीन-ताइवान के बीच युद्ध होता है — जो कि सब जानते हैं, क्योंकि जिस तरह चीन बार-बार ताइवान को घेर रहा है, कभी समुद्र में अपनी नौसेनाओं से तो कभी ताइवान के आकाश में अपने लड़ाकू विमानों के साथ प्रवेश करके — तो उस युद्ध में भी अमेरिका ताइवान को उसी तरह अकेला छोड़ देगा, जैसे उसने रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन को मरने के लिए अकेला छोड़ दिया था।
अब तो ट्रंप ये तक कह रहे हैं कि अगर यूक्रेन को अमेरिका से मदद चाहिए, तो यूक्रेन को अपने खनिज संसाधन अमेरिका को देने होंगे। पता नहीं अमेरिका किस तरह की दोस्ती निभा रहा है यूरोप और यूक्रेन के साथ। क्या इसे दोस्ती कहा जा सकता है? हमें नहीं लगता कि भारत कभी खुद को इस स्थिति में देखना चाहेगा।
भारत-पाक युद्ध (2025)
जब 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच 4 दिन का युद्ध हुआ, जिसमें भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया — क्योंकि इन्हीं पाकिस्तानी आतंकी कैंपों में प्रशिक्षण लेकर आतंकवादियों ने बार-बार भारत के मासूम लोगों की हत्या की है। चाहे वह हाल ही का पुलवामा में हुआ आतंकी हमला हो, जिसमें आतंकवादियों ने धर्म पूछकर 28 लोगों की जान ली, या फिर मुंबई हमला, उरी हमला, संसद पर हमला — ऐसे कई हमले इन्हीं पाकिस्तानी आतंकी कैंपों में प्रशिक्षित आतंकियों द्वारा किए गए हैं।
इस 4 दिन की युद्ध के बाद जब पाकिस्तान ने हार मानकर भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ को व्हाइट हाउस बुलाकर उनके लिए लंच आयोजित किया। शायद अमेरिकी राष्ट्रपति 9/11 का हमला भूल गए हैं, शायद वह भूल गए कि उसी हमले के मास्टरमाइंड को मारने के लिए उन्हें पाकिस्तान में घुसकर ऑपरेशन चलाना पड़ा था। और आज, उसी पाकिस्तानी आर्मी चीफ, जिसकी खुलेआम आतंकियों से मिलीभगत है, उसी को वे अब व्हाइट हाउस में लंच करवा रहे हैं।
ऐसे में भारत कैसे अमेरिका पर भरोसा कर सकता है? जिस तरह अमेरिका बाकी सहयोगी देशों का विश्वास खो रहा है, उसी तरह भारत का भरोसा भी अमेरिका पर डगमगा रहा है।
आगे की राह
अगर ट्रंप की यही नीति जारी रही, तो हो सकता है भारत को भी अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करना पड़े। वैसे भी रूस बार-बार RIC (Russia-India-China समूह) को फिर से सक्रिय करने की बात कर रहा है, और चीन ने भी भारत को इसे फिर से शुरू करने का प्रस्ताव देना शुरू कर दिया है। अब तक भारत ने इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है, लेकिन अगर यह समूह फिर से सक्रिय हो गया, तो अमेरिका के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। और वैसे भी, अमेरिका अपने सहयोगियों को इतने धोखे दे चुका है कि अब शायद ही कोई देश उसका समर्थन करे।

ट्रंप को यह समझने की ज़रूरत है कि जो हरकतें वह भारत के साथ कर रहे हैं, उनका नुकसान अमेरिका को होगा — भारत को नहीं। 25% का टैरिफ भारत के लिए कोई बड़ी परेशानी नहीं पैदा करेगा, क्योंकि भारत चीन की तरह निर्यात पर निर्भर नहीं है। भारत का घरेलू बाज़ार बेहद बड़ा है, इसलिए उसे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर भारत अमेरिका से दूरी बनाकर रूस और चीन के साथ चला गया, तो अमेरिका को जिस ‘विश्व शक्ति’ होने का घमंड है, वह तमगा उसके हाथों से फिसलने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा।
निष्कर्ष
अमेरिकी राष्ट्रपति को अपने फैसले सोच-समझकर लेने होंगे। उन्हें यह समझना होगा कि वे अब एक व्यवसायी नहीं, बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। किसी देश का राष्ट्रपति होना एक बड़ी ज़िम्मेदारी होती है। व्यवसाय में आप घाटा झेल सकते हैं, और उसका नुकसान केवल आपको उठाना पड़ता है। लेकिन अगर आप एक विश्व शक्ति देश के राष्ट्रपति हैं, तो आपकी मूर्खता की कीमत केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को चुकानी पड़ सकती है।